साल शुरू हो दूध दही से
साल खत्म हो शक्कर घी से।
पिपरमैंट, बिस्कुट मिसरी से
रहें लबालव दोनों खींसे।।
मस्त रहें सड़कों पर खेलें
ऊधम करें मचाएँ हल्ला
रहें सुखी भीतर से जी से।
साँझ, रात, दोपहर, सवेरा
सबमें हो मस्ती का डेरा।
कातें सूत बनाएँ कपड़े,
दुनिया में क्यों डरें किसी से।
पंछी गीत सुनाये हमको
बादल बिजली भाये हमको
करें दोस्ती पेड़ फूल से ।
लहर-लहर से नदी-नदी से
आगे पीछे ऊपर नीचे।
रहें हंसी की रेखा खींचे।
पास पड़ौस गाँव घर बस्ती
प्यार ढेर भर करें सभी से।
11 टिप्पणियाँ:
nice poem
nice
लवली पोयम।
Majedar kavita hai, padh ke achha laga
बहुत सुंदर
ऐसा ही करेंगें ....प्यारी कविता....
बहुत सुन्दर !
पं. भवानी प्रसाद मिश्र के गीत आज भी लोकप्रिय हैं!
तभी तो इसकी चर्चा यहाँ की है-
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/26.html
वाह बच्चों की तो लाटरी लग गयी। सुन्दर कविता के लिये बधाई।
बहुत सुन्दर कविता ....आभार !
अनुष्का
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