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साल शुरू हो दूध दही से, साल खत्म हो शक्कर घी से।

-भवानी प्रसाद मिश्र-

साल शुरू हो दूध दही से
साल खत्म हो शक्कर घी से।

पिपरमैंट, बिस्कुट मिसरी से
रहें लबालव दोनों खींसे।।

मस्त रहें सड़कों पर खेलें
ऊधम करें मचाएँ हल्ला
रहें सुखी भीतर से जी से।

साँझ, रात, दोपहर, सवेरा
सबमें हो मस्ती का डेरा।

कातें सूत बनाएँ कपड़े,
दुनिया में क्यों डरें किसी से।

पंछी गीत सुनाये हमको
बादल बिजली भाये हमको
करें दोस्ती पेड़ फूल से ।

लहर-लहर से नदी-नदी से
आगे पीछे ऊपर नीचे।
रहें हंसी की रेखा खींचे।

पास पड़ौस गाँव घर बस्ती
प्यार ढेर भर करें सभी से।

11 टिप्पणियाँ:

kunnu said...

nice poem

मोहम्‍मद ज़ैद said...
This comment has been removed by a blog administrator.
अंजना said...

nice

ज़ैद said...

लवली पोयम।

Ritendra said...

Majedar kavita hai, padh ke achha laga

अनुष्का श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर

Chaitanyaa Sharma said...

ऐसा ही करेंगें ....प्यारी कविता....

Coral said...

बहुत सुन्दर !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पं. भवानी प्रसाद मिश्र के गीत आज भी लोकप्रिय हैं!
तभी तो इसकी चर्चा यहाँ की है-
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/26.html

निर्मला कपिला said...

वाह बच्चों की तो लाटरी लग गयी। सुन्दर कविता के लिये बधाई।

रानीविशाल said...

बहुत सुन्दर कविता ....आभार !
अनुष्का