tag:blogger.com,1999:blog-47222484558131764702024-03-14T19:25:16.897+05:30बाल-मनहिन्दी बालसाहित्य (बालसाहित्यकारों) का साझा मंच।Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comBlogger152125tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-19097009534158405712013-12-28T17:45:00.001+05:302013-12-28T17:45:29.539+05:30वो गूगल में खोज रहा था, राम नाम है कैसे जपना।
बंदर ने देखा ये सपना
-राजीव राय
बंदर ने देखा ये सपना
लैपटॉप है उसका अपना।
वो गूगल में खोज रहा था
राम नाम है कैसे जपना।
बेटा बोला पापा छोड़ो
फेसबूक में खाता खोलो
सारा जंगल होगा अपना।
तभी बंदरिया डंडा लाई
लैपटॉप की करी पिटाई
बोली ये दुष्मन है अपना।
सब पेड़ों में मीठे फल हों
सब नदियों में मीठा जल हो Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-11815213666625327192013-09-13T20:52:00.004+05:302013-09-13T20:52:58.153+05:30अपनी भाषा हिन्दी है।
- डॉ0 मधुसूदन साहा -
अपनी भाषा हिन्दी है
हर माथे की बिन्दी है।
जरा बोलकर देखो तु
कितनी सरस सुहानी है,
मां की लोरी-सी कोमल
रोचक नई कहानी है,
राधा के पग की पायल,
कान्हा की कालिन्दी है।
इसे राष्ट्र ने मान दिया
संविधान में अपनाकर,
अब दायित्व निभाना है
इसका पूरा सपना कर,
फिर निकालता रहता क्यों,
यूं 'हिन्दी की चिन्दी' है।
इसे सीखना चाहो तो
झट जुबान पर चढ़Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-41584762252351787982013-02-19T13:13:00.001+05:302013-02-19T13:13:34.312+05:30पापा तुम लड़ना सीमा पर, बाकी चिन्ता मत करना।
पप्पू का पत्र
धनसिंह मेहता ‘अनजान’
पापा तुम लड़ना सीमा पर, बाकी चिन्ता मत करना।
देश बड़ा है जान है छोटी, जाँ की चिन्ता मत करना।।
नजरें तुम सीमा पर रखना, दुश्मन छिपा शिखर पर है।
तुम विचलित बिलकुल मत होना, देश तुम्हीं पर निर्भर है।
मम्मी कहतीं- लिख पापा को, माँ की चिन्ता मत करना।
चाचा की आयी थी चिट्ठी, चाची पहुँ गयीं झाँसी।
घर में Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-4034568566691297252013-02-12T20:10:00.000+05:302013-02-17T19:42:21.246+05:30राजा तेरे राजमहल का, रस्ता मेरे गाँव से।
मेरे गाँव से
-धन सिंह मेहता ‘अनजान’
राजा तेरे राजमहल का, रस्ता मेरे गाँव से।
है छोटा पदचिन्ह तुम्हारा राजा मेरे गाँव से।।
पीठ हमारी, कोड़ा तेरा, राह हमारी रोड़ा तेरा।
चना हमारा, घोड़ा तेरा, खाता मेरे गाँव से।।
बाग हमारे, फूल तुम्हारे, पाँव हमारे, शूल तुम्हारे।
नदी हमारी, गूल तुम्हारी, बस्ती मेरे गाँव से।।
जंगल अपना, घास Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-80866236219847945112013-01-06T12:29:00.001+05:302013-01-06T13:22:35.152+05:30मेरा सपना कितना अच्छा....
मेरा सपना कितना अच्छा
-रजनीकांत शुक्ल-
मेरा सपना कितना अच्छा,
हे ईश्वर हो जाए सच्चा।
बिना पढ़े ही इम्तहान में,
आएं नंबर सबसे ज्यादा।
रोज के मेरे खेलकूद में,
कोई नहीं पहुंचाए बाधा।
सभी कहें मुझे प्यारा बच्चा।
मेरा सपना कितना अच्छा।
मेरी कभी किसी गलती पर,
मार न बिलकुल पड़ने पाए।
मम्मी जी मुझको Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-11032688364860456412012-12-06T11:16:00.002+05:302012-12-06T11:16:27.035+05:30चिडि़या फुर्र (आनंद विश्वास की बाल कहानी)
आंनद विश्वास की बाल कहानी
चिड़िया फुर्र...
अभी दो चार दिनों से देवम के घर के बरामदे में चिड़ियों की आवाजाही कुछ ज्यादा ही हो गई थी। चिड़ियाँ तिनके ले कर आती, उन्हें ऊपर रखतीं और फिर चली जातीं दुबारा, तिनके लेने के लिये।
लगातार ऐसा ही होता, कुछ तिनके नीचे गिर जाते तो फर्श गंदा हो जाता। पर इससे चिड़ियों को क्या ? उनका तो निर्माण का कार्य चल रहा है, नीड़ निर्माण का कार्य। उन्हें Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-90691080515116148372012-10-31T06:44:00.002+05:302012-10-31T06:44:34.607+05:30...नुक्कड़ पर महफिल लग जाती।
स्कूल की वैन
डॉ. रामनिवास मानव
वैन स्कूल की जब भी आती, बच्चों में हलचल मच जाती।
भाग-दौड़ करते हैं बच्चे, देरी से डरते हैं बच्चे।
लगे रमन को बस्ता भारी, बस में चढ़ने की लाचारी।
भूला नवल टिफिन ही लाना, जूतों की पॉलिश करवाना।
मोनू की ढ़ीली है टाई, कैसे काम चलेगा भाई।
निम्मी भूली बैज लगाना, पर मुश्किल अब घर से लाना।
सुमन का Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-28106851266909655042012-10-19T06:02:00.001+05:302012-10-19T06:02:31.378+05:30उसी पहाड़ी के ढ़लान पर...
चाह हमारी...
प्रभात गुप्त
छोटी एक पहाड़ी होती, झरना एक वहां पर होता
उसी पहाड़ी के ढ़लान पर काश हमारा घर भी होता।
बगिया होती जहां मनोहर खिलते जिसमें सुंदर फूल
बड़ा मजा आता जो होता वहीं कहीं अपना स्कूल।
झरनों के शीतल पानी में घंटो खूब नहाया करते
नदी पहाड़ों झोपडि़यों के सुंदर चित्र बनाया करते।
होते बाग सेब चीकू के थोड़ा होता नीम Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-30963656283391183812012-08-02T07:51:00.000+05:302012-08-02T07:51:37.978+05:30आया राखी का त्यौहार
आया राखी का त्यौहार
डॉ0 देशबंधु शाहजहाँपुरी
खुशियों का लेकर उपहार
आया राखी का त्यौहार।
जूही ने गेंदा, गुलाब के,
तिलक लगा आशीष दिया।
तब तक खुश्बू बिखराना तुम,
जब तक चली न जाए बहार।
होठों पर मुस्कान बिछाकर,
बहनें बाँध रहीं राखी।
नहीं चाहिए उनको कुछ भी,
केवल माँगें प्यार-दुलार।
प्यारे भइया Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-65110488979082827972012-06-09T06:20:00.001+05:302012-06-09T06:20:38.838+05:30बाती-तेल जरूरी जैसे, दीपक और प्रकाश में...
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mso-padding-alt:0in Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-43712832493611725652012-05-20T07:42:00.001+05:302012-08-16T06:28:58.913+05:30...गर्मी को पानी से धोएँ, बारिश को हम खूब सुखाएँ
उनका मौसम
देवेन्द्र कुमार
गर्मी को पानी से धोएँ
बारिश को हम खूब सुखाएँ
जाड़े को फिर सेंक धूप से
अपनी दादी को खिलवाएँ।
कैसा भी मौसम हो जाए
उनको सदा शिकायत रहती
इससे तो अच्छा यह होगा
उनका मौसम नया बनाएँ।
कम दिखता है, दाँत नहीं है,
पैरों से भी चल न पातीं
बैठी-बैठी रटती रहतीं
न जाने कब राम उठाएँ।
शुभ-शुभ बोलो प्यारी दादी,Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-73054264897531384492012-04-24T17:46:00.000+05:302012-04-24T17:46:17.824+05:30क्यों पसंद हैं हरदम तुमको फूलों के ही साये?
क्यों पसंद हैं हरदम तुमको फूलों के ही साये ?
अश्वनी कुमार पाठक
क्यों पसंद हैं हरदम तुमको फूलों के ही साये ?
किस अलबेले चित्रकार से, तुमने पंख रंगाये ?
क्यों कहते हैं बच्चे तुमको, तितली, तितली रानी?
क्यों लगती तुम उनको इतनी, प्यारी और सुहानी?
तुम्हें देखकर मुन्ना-मुन्नी, नन्हें हाथ बढ़ाते।
पंख तुम्हारे चुटकी में, आतेDr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-33900045874436867172012-04-11T21:19:00.000+05:302012-04-11T21:19:02.502+05:30बाबा की बातें रंगीनबातें हैं रंगीन देवेन्द्र कुमार
बाबा के हैं बाल सफेद पर उनकी बातें रंगीन।
सुबह टहलने रोज निकलते अपने काम सभी खुद करते छत पर उनकी कसरत का तो मजेदार होता है सीन।
हरदम कुछ-कुछ करते रहते दादी से बिन बात झगड़ते नकली दाँत दिखाकर पूँछे मुँह में दाँत बचे क्यों तीन।
रोज कहानी हमें सुनाते अपने बचपन में ले जाते बोले, अब दुनिया घूमूँगा कल सपनेDr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-75358796293427396192012-03-25T10:39:00.001+05:302012-03-25T10:44:37.165+05:30...हालत मेरी खस्ता है। हालत मेरी खस्ता है-सूर्य कुमार पाण्डेय
टीचर जी, ओ टीचर जी,हालत मेरी खस्ता है।
के जी टू में पढ़ती हूँ,टू केजी का बस्ता है।
चलूँ सड़क पर रिक्शा वाला,मुझे देख कर हँसता है।
एक सवारी और लाद लो,ताने मुझपर कसता है।
बोझ किताबों का कम करिए,बड़ी दूर का रस्ता है।
नन्हें फूलों पर क्यों रक्खा,यह भारी गुलदस्ता है।
टीचर जी, ओ टीचर जी,हालत मेरी खस्ता है।Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-84751444615145433052012-03-05T07:49:00.000+05:302012-03-05T07:49:30.197+05:30...आओ खेलें होली।<!--[if gte mso 9]> Normal 0 false false false MicrosoftInternetExplorer4 <![endif]--><!--[if gte mso 9]> <![endif]--><!--[if gte mso 10]>
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मूस ही मुस्टंडा,लिये हाथ में डंडा।
बिल्ली बोली म्याऊँ,किस चूहे को खाऊँ।
मूस ही मुस्टंडा,गिरा हाथ से डंडा।
बिल्ली जी के आगे,पूँछ दबाकर भागे।
मूस ही मुस्टंडा,रह गया बाहर डंडा।
घुस गये जाकर बिल में,चूहों की महफिल में।Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-57060870996334318332012-02-23T07:24:00.000+05:302012-02-23T07:24:14.155+05:30रंग बदलने में मोटू जी, गिरगिटान के भाई। गिरगिटान के भाई। -कृष्णेश्वर डींगर
कभी पहनते कुर्ता टोपी, कभी सूट नेक टाई। रंग बदलने में मोटू जी, गिरगिटान के भाई। कभी हमारी टीम पकड़ कर, बैट्स मैन बन जाते। कभी हमारे ही विरोध में, बॉलर बन कर आते। कोई उनको कहता मोटू, कोई कहता बबलू। कोई उनको कहता गोलू, मैं कहता दल-बदलू।Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-32995790052078763002012-02-11T17:59:00.000+05:302012-02-11T17:59:18.399+05:30नील गगन पर चमकें तारे<!--[if gte mso 9]> Normal 0 false false false MicrosoftInternetExplorer4 <![endif]--><!--[if gte mso 9]> <![endif]--><!--[if gte mso 10]>
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दिन सहमे-सिकुडे से लगते,रातें बडी लडैया...जाड़े आये भैया।
खींच-खींच सूरज की चादर,रजनी पाँव पसारे।काना फूँसी करें उघारे,थर्..थर्..चन्दा-तारे।धूप बेचारी ...हारी,करती जल्दी गोल बिछैया...जाड़े आये भैया।
लदे फदे कपडों में निकलें,चुन्नू-मुन्नू भाई।मम्मी के हाथों में नाचे,दिन भर ऊन-सलाई।किट्-किट्..करते दाँत,कंठ से सी...सी दैया--दैया।जाड़े आये भैया।
दुश्मन लगता Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-76955987464667108152011-12-18T08:20:00.008+05:302012-01-08T13:34:22.217+05:30जूते की पुकार... जूते की पुकार
रमेश तैलंग
फट गया हूं मैं तले से, कट गया हूं मैं गले से।
लद गया मेरा जमाना, हो गया हूं अब पुराना।
आ पड़ी है जान पर, रुकने लगे सब काम मेरे।
हो कहां, मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे!
एक बूढ़े दादा जी हैं, छोड़ते मुझको नहीं हैं।
थक गया हूं रोज कहकर, चल रहा हूं बस घिसटकर।
व्यर्थ ही, लगता, गए सब मिन्नतें, 'परनाम' मेरे।
हो कहां, मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे!
ऑपरेशन की जरूरत, है Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-60353915179266124212011-12-07T06:45:00.002+05:302012-01-08T13:34:40.774+05:30अब नहीं मैं दूध पीता एक बच्चा... माँ समझती क्यों नहीं है?- रमेश तैलंग
अब नहीं मैं दूध पीता एक बच्चा
माँ समझती क्यों नहीं है?
चाहता हूं, मैं बिताऊं वक्त ज्यादा
दोस्तों के बीच जा कर,
चाहता हूं, मैं रखूँ दो-चार बातें
सिर्फ अपने तक छुपाकर,
पर मेरे आगे से डर की श्याम छाया
दूर हटती क्यों नहीं है ?
छोड़ आया हूं कभी का बचपना, जो
सिर्फ जिद्दी, मनचला था,
हो गया है अब बड़ा सपनाDr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4722248455813176470.post-82651895297038912952011-11-30T20:42:00.000+05:302011-11-30T20:42:25.143+05:30बूँदों में नाचूँ, पानी में भीगूँ और भिगाऊँ।<!--[if gte mso 9]> Normal 0 false false false MicrosoftInternetExplorer4 <![endif]--><!--[if gte mso 9]> <![endif]--><!--[if gte mso 10]>
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भैया कहता मुझको पिन्ना। दीदी कहती कितना घिन्ना।
साथी मुझे बनाते घोड़ा, और लगाते कसकर कोड़ा।कहते कितना मरियल-अडि़यल, सरपट चलता नहीं निगोड़ा।गोलू, भोलू सदा पीठ पर, करते रहते ता-ता धिन्ना।
मुझको कहते सभी अनाड़ी, खुद को मानें मँजा खिलाड़ी।खतरे से हो जहाँ खेलना, कर देते हैं मुझे अगाड़ी।ढ़ोल बजाते ढम ढम ढम ढम, टमकी बोले तड़-तड़ दिन्ना।
सबकी नजरों का Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com5