- डॉ0 मधुसूदन साहा -
अपनी भाषा हिन्दी है
हर माथे की बिन्दी है।
जरा बोलकर देखो तु
कितनी सरस सुहानी है,
मां की लोरी-सी कोमल
रोचक नई कहानी है,
राधा के पग की पायल,
कान्हा की कालिन्दी है।
इसे राष्ट्र ने मान दिया
संविधान में अपनाकर,
अब दायित्व निभाना है
इसका पूरा सपना कर,
फिर निकालता रहता क्यों,
यूं 'हिन्दी की चिन्दी' है।
इसे सीखना चाहो तो
झट जुबान पर चढ़ जाती,
बस थोड़ी-सी चाहत से
दादी सब कुछ पढ़ पाती,
स्वेच्छा से सब सीख रहे
नहीं कहीं पाबंदी है।
नहीं कहीं पाबंदी है।
4 टिप्पणियाँ:
सुंदर रचना...
आप की ये रचना आने वाले शनीवार यानी 14 सितंबर 2013 को ब्लौग प्रसारण पर लिंक की जा रही है...आप भी इस प्रसारण में सादर आमंत्रित है... आप इस प्रसारण में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...
उजाले उनकी यादों के पर आना... इस ब्लौग पर आप हर रोज 2 रचनाएं पढेंगे... आप भी इस ब्लौग का अनुसरण करना।
आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
इस के लिये आप को मात्रkuldeepsingpinku@gmail.com पर मिल भेजकर निमंत्रण लिंक प्राप्त करना है।
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