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बापू तुम्हें कहूं मैं बाबा, या फिर बोलूं नाना?

 बाल गीत

बापू तुम्हें कहूं मैं बाबा, या फिर बोलूं नाना?
सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।।

छड़ी हाथ में लेकरके तुम, सदा साथ क्यों चलते?
दांत आपके कहां गये, क्यों धोती एक पहनते?

हमें बताओ आखिर कैसे, तुम खाते थे खाना?
सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।।

टीचर कहते हैं तुमने भारत आज़ाद कराया।
एक छड़ी से तुमने था दुश्मन मार भगाया।

कैसे ये हो गया अजूबा मुझे जरा समझाना।
सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।। 

भोला–भाला सा मैं बालक, अक्ल मेरी है थोड़ी।
कह देता हूं बात वही जो, आती याद निगोड़ी।

लग जाए गर बात बुरी तो रूठ नहीं तुम जाना।
सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।

- ज़ाकिर अली 'रजनीश'

9 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर बाल-गीत है।

बापू को शत्-शत् नमन!

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत सुंदर कविता..मन बार बार गुनगुनाता है इस सुंदर गीत को..
धन्यवाद ..जाकिर जी,

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर बाल गीत बहुत-बहुत बधाई ।

Anil Pusadkar said...

सुन्दर गीत,पढ कर मन बचपन मे लौट जाना चाहता है।

दिगम्बर नासवा said...

BAAPOO KI YAAD MEIN ITNI SUNDAR BAAL RACHNA .... BACHPAN KI YAAD TAAZA KAR GAYEE ....

Dr. Zakir Ali Rajnish said...
This comment has been removed by the author.
रचना गौड़ ’भारती’ said...

दीप की ज्योति सा ओज आपके जीवन में बना रहे इस कामना के साथ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। आपकी बुद्धि में गणेश की छाया,घर में लक्ष्मी की माया और कलम में सरस्वती का वास रहे।
*Happy Deepavali*

Unknown said...

Dik ko chhu gaya,
bahut achchha laga

Unknown said...

Dik ko chhu gaya,
bahut achchha laga