एक हवा थी हल्की-हल्की,
एक हवा थी भारी।
एक हवा चुपके से आई,
एक ने धूल बुहारी।
एक हवा थी ठंडी-ठंडी,
एक थी गरम भभूका।
एक हवा खुशियॉं ले आई,
एक दुखों का झोंका ।
एक हवा थी खुशबू वाली,
आई, आ कर चली गई ।
एक हवा है सच्ची-सादी,
साँस साँस में बसी हुई।
-श्याम सुशील-
10 टिप्पणियाँ:
बहुत ही अच्छी कविता। मन मोह लिया। साँस-साँस में भर गयी। बधाई।
बहुत अच्छी कविता।
regards
nice poem.
बहुत सुन्दर
सुंदर कविता
बहुत प्यारी रचना ...बहुत मनभायी
अनुष्का
बहुत सुन्दर...
बहुत प्यारी रचना ...
सुंदर कविता....
प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
अपने मन में इक दिया नन्हा जलाना ज्ञान का।
उर से सारा तम हटाना, आज सब अज्ञान का।।
आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
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आपकी प्यारी सी पोस्ट की चर्चा
बाल चर्चा मंच पर भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/11/27.html
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