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सुबह–शाम बस पढ़ना–पढ़ना, कोई अच्छी बात नहीं है

–रमेशचन्द्र पन्त–

सुबह–शाम बस पढ़ना–पढ़ना,
कोई अच्छी बात नहीं है।

घर से कभी निकल कर बाहर,
धमा–चौकड़ी खेल करो तो।

दु:ख से हो यदि कोई पीडित,
हंस–हंस कर दो बात करो तो।

अपने तक ही सीमित रहना,
अच्छी बात नहीं है।

बगिया में कुछ देर बैठकर,
चिडियों के मधुगान सुनो तो।

इन्द्रधनुष–सी आभा वाले,
सपनें के कुछ जाल बुनो तो।

दुनिया से यूँ कट कर रहना,
अच्छी बात नहीं है।

5 टिप्पणियाँ:

Sraddha Pandey said...

Baalman ki sachchee abhivyakti.

ओम आर्य said...

बेहद खुबसूरत रचना.......बधाई

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

भई जाकिर जी, आप तो बच्चों को बिगाड रहे हैं..:)

सुन्दर रचना!!

दिगम्बर नासवा said...

jaakir भाई ........ sundar रचना है bacchhon की ......... मन prasan हो गया ........

साहित्य said...

Bahut sundar.