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कविवर तोंदू राम बुदक्कड़, कभी कभी आ जाते हैं

-हरिकृष्ण देवसरे-
कविवर तोंदू राम बुदक्कड़,
कभी कभी आ जाते हैं।

खड़ी निरंतर रहती चोटी,
आँखें धंसी, मिचमिची छोटी,
नाक चायदानी की टोंटी,
अंग गंग की छटा निराली
भारी तोंद हिलाते हैं।

कंधे पर लाठी बेचारी,
लटका उसमें पोथी भारी,
लिये हाथ में सुंघनी प्यारी,
सूँघ सूँघकर आ छीं आ छीं
का आनन्द उठाते हैं।

ये है नियमी धर्म धुरंधर,
गायक गुपचुप भाँड उजागर,
परम स्वतंत्र, न नौकर चाकर,
झूम झूमकर मटर मटक कर,
हलुआ पूरी खाते हैं।

कविता का बँध जाता ताँता,
चप्पल का विवाह ठन जाता,
जूता दूल्हा बनकर आता,
बिल्ली रानी, पिस्सू राजा
का भी जोड़ मिलाते हैं।
चित्र साभार- http://in.jagran.yahoo.com/

4 टिप्पणियाँ:

janta ki aawaz said...

sir ji kuch log sirf khane ke liye jiite hai ........
mai to haste haste lot pot ho gaya .....

Vinay said...

बढ़िया है!
---

दिगम्बर नासवा said...

हां हां हां........... सुन्दर है आपकी कविता......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर बाल-गीत प्रस्तुत करने के लिए आभार!