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अरी चिरइया नींद की, हो जा जल्‍दी फुर्र


काना बाती कुर्र
-कुँअर बेचैन -

अरी चिरइया नींद की, हो जा जल्‍दी फुर्र।
काना बाती कुर्र।

छोड़ अपने आराम को, सूरज निकला काम को,
देकर सबको रोशनी, घर लौटेगा शाम को।
तू भी जल्‍दी छोड़ दे खर्राटों की खुर्र।
काना बाती कुर्र।

जगीं शहर की मंडियॉं, गॉंवों की पगडंडियॉं,
खेतों ने भी दिखलाईं हरी फसल की झंडियॉं।
चली सड़क पर मोटरें, घर घर घर घर घुर्र।
काना बाती कुर्र।

5 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला said...

वाह ये तो बहुत अच्छा बाल गीत है मैने शायद ये ब्लाग ही पहली बार देख है बधाई

ओम आर्य said...

bahut hi sundar hai bal geet ......bahut hi sundar

seema gupta said...

बचपन याद आ गया.....हम कभी बच्चे थे ना....प्यरी और मनभावन रचना...

regards

दिगम्बर नासवा said...

Sundar baal geet......

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Achchha laga ye balgeet...Kuvanr ji ko hardik badhai pahunchayen.
HemantKumar