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जादू की पु‍डिया सा मौसम


कभी ताड़ सा लम्बा दिन है कभी सींक सा लगता।
जादू की पु‍डिया सा मौसम, रोज बदलता रहता।।

कुहरा कभी टूट कर पड़ता, चलती कभी हवाएं।
आए कभी यूं आंधी कि कुछ समझ में नहीं आए।

जमने लगता खून कभी तो सूरज कभी पिघलता।।
जादू की पु‍डिया सा मौसम, रोज बदलता रहता।।

कभी बिकें अंगूर, अनार व कभी फलों का राजा।
कभी – कभी हैं बिकते जामुन बाज़ारों में ताज़ा।

लीची आज और कल आड़ू, मस्ती भरा उछलता।
जादू की पु‍डिया सा मौसम, रोज बदलता रहता।।

बढ़ता जाता समय तेज गति हर कोई बतलाए।
छूट गया जो पीछे, वो फिर लौट कभी न आए।

पछताए वो, काम समय से जो अपना न करता।
जादू की पु‍डिया सा मौसम, रोज बदलता रहता।।

- ज़ाकिर अली 'रजनीश'
महामंत्री- साइंटिफिक वर्ल्‍ड, साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

7 टिप्पणियाँ:

Vinay said...

सुरों पर कब सजा रहे हैं...

र्कीति वैद्य said...

सीखपूर्ण सुन्‍दर कविता।

साहित्य said...
This comment has been removed by the author.
साहित्य said...

बच्‍चों के लिए मनोरंक एवं उपयोगी कविता।

दिगम्बर नासवा said...

बच्चों की रचना में भी आनंद है.........लाजवाब लिखी है.......

दिगम्बर नासवा said...
This comment has been removed by the author.
yenni 'yendoel' said...

namastee..
i dont understand hindi.. if it is.
but i believe this must be a great blog! love those cute pictures in your every posting.