-रजनीकांत शुक्ल-
मेरा सपना कितना अच्छा,
हे ईश्वर हो जाए सच्चा।
बिना पढ़े ही इम्तहान में,
आएं नंबर सबसे ज्यादा।
रोज के मेरे खेलकूद में,
कोई नहीं पहुंचाए बाधा।
सभी कहें मुझे प्यारा बच्चा।
मेरा सपना कितना अच्छा।
मेरी कभी किसी गलती पर,
मार न बिलकुल पड़ने पाए।
मम्मी जी मुझको खुश होकर,
मनचाहे सामान दिलाएं।
और कभी पापाजी मुझको,
साथ लिए बाजार घुमाएं।
मन में मेरे ऐसी इच्छा।
मेरा सपना कितना अच्छा।
6 टिप्पणियाँ:
लाजवाब बाल रचना ...
बिना पढ़े सबसे ज्यादा नंबर ...
nice poem..
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
Khubsurat Rachana Hai.
ऐसा तो बस हो ही जाये
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति बालमनो भावों की .
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