बंदर-बंदर मस्त कलंदर
क्यों बैठे हो डाली पर ?
चलो उतरकर आओ अंदर,
काँप रहे हो तुम थर थर।
बंदर बोला- अरे मुछंदर,
कभी न मैं आऊँ अंदर।
डम-डम-डमडम डमरू ले कर
मुझे नचाओगे दिन भर।
-सूर्य कुमार पाण्डेय
हिन्दी बालसाहित्य (बालसाहित्यकारों) का साझा मंच।
बंदर-बंदर मस्त कलंदर
क्यों बैठे हो डाली पर ?
चलो उतरकर आओ अंदर,
काँप रहे हो तुम थर थर।
बंदर बोला- अरे मुछंदर,
कभी न मैं आऊँ अंदर।
डम-डम-डमडम डमरू ले कर
मुझे नचाओगे दिन भर।
-सूर्य कुमार पाण्डेय
3 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया बाल गीत!!
जाकिर भाई बाल साहित्य के इस साझे मंच के लिए बधाई । कभी मेरे ब्लाग पर भी आएं । मेरा ब्लाग है बबलू बचपन डाट ब्लाग स्पाट काम
वाकई मस्त कलंदर।
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S.B.A. TSALIIM.
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