पप्पू का पत्र
धनसिंह मेहता ‘अनजान’
पापा तुम लड़ना सीमा पर, बाकी चिन्ता मत करना।
देश बड़ा है जान है छोटी, जाँ की चिन्ता मत करना।।
नजरें तुम सीमा पर रखना, दुश्मन छिपा शिखर पर है।
तुम विचलित बिलकुल मत होना, देश तुम्हीं पर निर्भर है।
मम्मी कहतीं- लिख पापा को, माँ की चिन्ता मत करना।
चाचा की आयी थी चिट्ठी, चाची पहुँ गयीं झाँसी।
घर में दीदी, माँ दादी है दादा जी को है खाँसी।
दादा कहते-लिख पापा को, ‘बा’ की चिन्ताप मत करना।
अबकी बारिश को छत पर का, पानी टपका चूल्हे’ में।
सीढ़ी से दादी फिसली थीं, चोट लगी है कूल्हे में।
दादी कहतीं-लिख पापा को, ‘माँ’ की चिन्ता मत करना।
करनी है दीदी की शादी, दादा रिश्ता खोज रहे।
अबकी जाड़े में रौनक हो, हम सब ऐसा सोच रहे।
दीदी कहतीं-लिख पापा को, ‘हाँ’ की चिन्ता मत करना।
घर को जब आओगे पापा, मुझको, हाथ घड़ी लाना।
दादी का चश्मा ला देना, दादा हाथ छड़ी लाना।
मैं लिखता हूँ तुमको पापा, ‘याँ’ की चिन्ता मत करना।
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