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बाती-तेल जरूरी जैसे, दीपक और प्रकाश में...

 

पढ़ना बहुत जरूरी

-मुकुंद कौशल-

जेठ में जैसे धूप जरूरी, पानी ज्यों चौमास में
वैसे पढ़ना बहुत जरूरी, अपने पूर्ण विकास में।

गाँव कबीले जाग चुके हैं आगे यहाँ किसान सभी
रात गई अब हुआ सबेरा हों पूरे अरमान सभी

बाती-तेल जरूरी जैसे, दीपक और प्रकाश में
वैसे पढ़ना बहुत जरूरी, अपने पूर्ण विकास में।

अगर न समझे मूल्य समय का तो साधन कर सकते क्या
ज्ञान बिना पशुवत् है मानव ज्ञान बिना यह जीवन क्या

जीने को है साँस जरूरी, हवा जरूरी साँस में
वैसे पढ़ना बहुत जरूरी, अपने पूर्ण विकास में।

शब्द हमारे सुख के साथी सब मिलजुल कर पढ़ें-बढ़ें
जैसे भोजन बिना स्वाद का वैसे जीवन बिना पढ़े

खट्टापन जैसे अचार में, गुड़ जैसे मिठास में
वैसे पढ़ना बहुत जरूरी, अपने पूर्ण विकास में।

13 टिप्पणियाँ:

PRINCIPAL HPS SR SEC SCHOOL said...

KAVITA BADI MAHAN H BHAIYA KAVITA BADI MAHAAN RE,
KARTI H KAI SAMADHAN RE KARTI H KAI SAMADHAN RE

virendra sharma said...

खट्टापन जैसे अचार में, गुड़ जैसे मिठास में
वैसे पढ़ना बहुत जरूरी, अपने पूर्ण विकास में।
गीत संगीत और बाल बोध सभी एक जगह .

virendra sharma said...

गीत संगीत और बाल बोध सभी एक जगह .

सदा said...
This comment has been removed by the author.
सदा said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति।

कल 13/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


'' छोटे बच्‍चों की बड़ी दुनिया ''

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर प्रेरणादायक कविता है , मुकुंद जी. बधाई . हम इसका उपयोग म्यूनिसपल स्कूल के बच्चों के लिए करना चाहते हैं, क्या आपकी अनुमति है? कृपया सूचित करें.
manju@ei-india.com
सादर
मंजु महिमा

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत प्यारी रचना..........

बधाई.

अनु

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर
बहुत ही प्यारी रचना...

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया

सादर

Vandana Ramasingh said...

बाती-तेल जरूरी जैसे, दीपक और प्रकाश में
वैसे पढ़ना बहुत जरूरी, अपने पूर्ण विकास में।

बहुत सुन्दर सन्देश

Satish Saxena said...

वाह ...

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

बाती-तेल जरूरी जैसे, दीपक और प्रकाश में
वैसे पढ़ना बहुत जरूरी, अपने पूर्ण विकास में।

अगर न समझे मूल्य समय का तो साधन कर सकते क्या
ज्ञान बिना पशुवत् है मानव ज्ञान बिना यह जीवन क्या
अर्शिया अली जी -जाकिर अली जी ..सुन्दर सन्देश फैलाती हुयी प्यारी रचना ..
भ्रमर ५

मनोज कुमार said...

मनभावन प्रस्तुति।