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छींक मारते घर को वापस आए।

 शिशुगीत ''घुमक्कड़ पुल्लू''
 
 एक बार की बात घुमक्कड़ पुल्लू, 
घुम्मी करते- करते पहुंचे कुल्लू।
पर कुल्लू  की ठण्ड देख घबडा़ए, 
छींक मारते घर को वापस आए।
 
डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

8 टिप्पणियाँ:

kunnu said...

Nice poem.

Chaitanyaa Sharma said...

प्यारी सी कविता ....

ज़ैद said...

बहुत प्‍यारी कविता। मजा आ गया।

Pratishtha said...

Nice poem.

-सर्जना शर्मा- said...

ज़ाकिर अली जी रसबतिया का रसिक बनने के लिए धन्यवाद आपका रस भरी बातों में स्वागत है आशा है आप भी अपने दिल की बात कहने के लिए रसबतिया पर ज़रूर आते रहेगें ।
आपका प्रयास बहुत अच्छा लगा ब्लॉग्स की टीआरपी देख कर मन खुश हो गया

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत मज़ेदार शिशुकविता!

Fauziya Reyaz said...

bahut pyaariii

cute

डॉ. नागेश पांडेय संजय said...

Thank you Zakir ji .