दूर-दूर क्यों रहतीं हमसे, मुँह खोलो, कुछ बोलो तितली।
इन्द्रधनुष से पंख सजा, या फूलों से रंग चुराए?
छुई-मुई सी नाजु़क हो तुम, किसने नखरे तुम्हें सिखाए?
परियों जैसे पंख तुम्हारे, कैसे हैं? असली या नकली?
दूर-दूर क्यों रहतीं हमसे, मुँह खोलो, कुछ बोलो तितली।
फूल-फूल का रस पीती हो, रस पर ही मानो जीती हो।
यह व्रत किसके लिए साधतीं, किस प्रिय की तुम मन चीती हो?
चुपके-चुपके क्यारी-क्यारी किसको ढुँढ़ा करतीं इकली?
दूर-दूर क्यों रहतीं हमसे, मुँह खोलो, कुछ बोलो तितली।
पलतीं सदा बहारों में तुम, जहाँ न कोई दिखता है ग़म।
फिरभी पनप न पाती हो क्यों, चिंतित सी लगती हो हरदम?
किस अभाव के कारण ऐसी बनी हुई हो दुबली-पतली?
दूर-दूर क्यों रहतीं हमसे, मुँह खोलो, कुछ बोलो तितली।
गुचपुप फूलों से बतियातीं, हमें दूर से ही ललचातीं।
बड़ी खूबसूरत छलना हो, छूना चाहें तो उड़ जातीं।
पुष्पपुरी की स्वप्न-परी हो अथवा कुदरत की कठपुतली?
दूर-दूर क्यों रहतीं हमसे, मुँह खोलो, कुछ बोलो तितली।
-बाल कृष्ण गर्ग-
11 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर।
बाल कृष्ण जी को हार्दिक बधाई।
Nice poem.
बेहद मजेदार कविता।
... prasanasheey rachanaa ... shaandaar prastuti !!!
बहुत अच्छी बाल कविता ..
बहुत ही प्यारा गीत है ...बहुत मन भाया.
धन्यवाद
अनुष्का
बहुत सुन्दर कविता। बधाई।
सुन्दर कविता ...
very nice..
mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
बहुत सुन्दर बाल कविता ..
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