पेड़ किसी से नहीं पूछता कहो, कहाँ से आए ?
वह तो बस कर देता छाया चाहे जो सुस्ताए।।
खिलते समय न फूल सोचता कौन उसे पाएगा?
उसकी खुशबू अपनी सांसों में भर इतराएगा।।
बादल से जब सहा न जाता अपने जल का संचय।
बस, वह बरस-बरस भर देता नदियाँ, नहर, जलाशय।।
जो स्वभाव से ही दाता है उन्हें न कोई भ्रम है।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।।
-बालस्वरुप राही-
9 टिप्पणियाँ:
सुंदर रचना
बेहद खूबसूरत रचना…………सुन्दर संदेश देती है।
प्रकृति में पूर्ण समर्पण है। पूर्ण समर्पण अर्थात् "प्रेम"। हमारा प्रतिदान बहुत कमतर रहा है,इसके बावजूद।
Ati syndar.
बस, वह बरस-बरस भर देता नदियाँ, नहर, जलाशय।।
बहुत ही शिक्षाप्रद ग़ज़ल राही जी की .....
सच्च है प्रकृति हमें बहुत ही सीख देती है .....
बहुत अच्छी रचना।
प्रायमरी स्कूल में हमने एक गीत पढ़ा था, वो याद आ गया,
फूलों से नित हंसना सीखो,
भौंरों से नित गाना,
फल से लदी डालियों से नित
सीखो शीश झुकाना।
बहुत ही सुन्दर शिक्षा देती बहुत ही सुन्दर रचना ....आभार !
अनुष्का
बेहद खूबसूरत रचना…………
बहुत ही सुन्दर रचना ....
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