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हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।

-रामनरेश त्रिपाठी-
पहने धोती कुरता झिल्ली।
गमछे से लटकाये किल्ली।।

कस कर अपनी घोड़ी लिल्ली।
तिल्ली सिंह जा पहुँचे दिल्ली।।

पहले मिले शेख जी चिल्ली।
उनकी बहुत उड़ाई खिल्ली।।

चिल्ली ने पाली थी बिल्ली।
बिल्ली थी दुमकटी चिबिल्ली।।
 
उसने धर दबोच दी बिल्ली।
मरी देख कर अपनी बिल्ली।।

गुस्से से झुँझलाया चिल्ली।
लेकर लाठी एक गठिल्ली।।

उसे मारने दौड़ा चिल्ली।
लाठी देख डर गया तिल्ली।।

तुरत हो गयी धोती ढिल्ली।
कस कर झटपट घोड़ी लिल्ली।।

तिल्ली सिंह ने छोड़ी दिल्ली।
हल्ला हुआ गली दर गल्ली।
तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।

5 टिप्पणियाँ:

कुन्नू said...

प्याली प्याली कविता।

Randhir Singh Suman said...

nice

Akshitaa (Pakhi) said...

तिल्ली सिंह ने छोड़ी दिल्ली।
हल्ला हुआ गली दर गल्ली।
तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।
...हा.हा.हा..मजेदार रही .


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"पाखी की दुनिया" में इस बार पोर्टब्लेयर के खूबसूरत म्यूजियम की सैर

shubham sachdev said...

अंकल ये तो बहुत प्याली-प्याली कविता है । मेली कहानियां भी जरूर पढना ... शुभम सचदेव

साहित्य said...

Sundar.