-उषा यादव-
खिचड़ी के यार
चिड़िया ले कर आई चावल
और कबूतर दाल।
बंदर मामा बैठे-बैठे
बजा रहे थे गाल।
चिड़िया और कबूतर बोले-
मामा, लाओ घी।
खिचड़ी में हिस्सा चाहो तो
ढूँढ़ो कहीं दही।
पहले से हमने ला रक्खे
पापड़ और अचार।
यही चार तो होते हैं जी
इस खिचड़ी के यार।।
5 टिप्पणियाँ:
Bahut sundar.
बहुत मज़ेदार रचना इस ब्लॉग पर आकर हम भी अपना बचपन जी लेते हैं
धन्यवाद
बचपन से सुनते थे..खिचड़ी के चार यार..
आज उस पर कविता का रुप देख कर आनन्द आ गया.
जाकिर अली रजनीश तो हमारे मित्र ही हैं!
उनकी रचना पढकर अछ्छा लगा!
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आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है-
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/07/7.html
बहुत सुन्दर ........
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