Pages

Subscribe:

Ads 468x60px

test ad

यही चार तो होते हैं जी इस खिचड़ी के यार।

-उषा यादव-
खिचड़ी के यार

चिड़िया ले कर आई चावल
और कबूतर दाल।
बंदर मामा बैठे-बैठे
बजा रहे थे गाल।

चिड़िया और कबूतर बोले-
मामा, लाओ घी।
खिचड़ी में हिस्सा चाहो तो
ढूँढ़ो कहीं दही।

पहले से हमने ला रक्खे
पापड़ और अचार।
यही चार तो होते हैं जी
इस खिचड़ी के यार।।

5 टिप्पणियाँ:

Kunnu said...

Bahut sundar.

इस्मत ज़ैदी said...

बहुत मज़ेदार रचना इस ब्लॉग पर आकर हम भी अपना बचपन जी लेते हैं
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

बचपन से सुनते थे..खिचड़ी के चार यार..

आज उस पर कविता का रुप देख कर आनन्द आ गया.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जाकिर अली रजनीश तो हमारे मित्र ही हैं!
उनकी रचना पढकर अछ्छा लगा!
--
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है-
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/07/7.html

Chinmayee said...

बहुत सुन्दर ........