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लाला जी की बड़ी तोंद है, घंटाघर की घड़ी तोंद है।


-सूर्यभानु गुप्त-

लाला जी की बड़ी तोंद है।
घंटाघर की घड़ी तोंद है।।

लाला जी से मिलो बाद में,
उनसे पहले खड़ी तोंद है।

कुरते में घुसने से पहले,
रोज लड़ाई लड़ी तोंद है।

बस में चढ़ते और उतरते,
दरवाजे में अड़ी तोंद है।

किसी अंगूठी में ज्यों हीरा,
लाला जी में जड़ी तोंद है।

बच्चे-बूढ़े सभी छुड़ाते,
हाथ लगी फलझड़ी तोंद है।

4 टिप्पणियाँ:

Raj Kumar Jain Rajan said...

Majedar Kvita.

लवली मिश्रा said...

Nice Poem

गुडडू said...

तोंद की बात निराली है।
खा जाए ये दुनिया भर का,
फिरभी गोदाम खाली है।

Kavita said...

Manbhavan Kavita.