Pages

Subscribe:

Ads 468x60px

test ad

दूँगी फूल कनेर के


आना मेरे गाँव, तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

कुछ कच्चे, कुछ पक्के घर हैं, एक पुराना ताल है।
सड़क बनेगी सुनती हूं, इसका नम्बर इस साल है।

चखते आना टीले ऊपर कई पेड़ हैं बेर के।
आना मेरे गाँव, तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

खडिया, पाटी, कापी, बस्ते, लिखना-पढ़ना रोज है।
खेलें-कूदें कभी न फिर तो यह सब लगता बोझ है।

कई मुखौटे तुम्हें दिखाऊंगी, मिट्टी के शेर के।
आना मेरे गाँव, तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

बाबा ने था पेड़ लगाया, बापू ने फल खाए हैं।
भाई कैसे, उसे काटने को रहते ललचाए हैं।

मेरे बचपन में ही आए दिन कैसे अन्धेर के।
आना मेरे गाँव, तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

हंसना-रोना तो लगता ही रहता है हर खेत में।
रूठे, कुट्टी कर लो, लेकिन खिल उठते हैं मेल में।

मगर देखना क्या होता है, मेरी चिट्ठी फेर में।
आना मेरे गाँव तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।
-अनन्त कुशवाहा
A Hindi Children Poem (Bal Geet) by Anant Kushwaha

3 टिप्पणियाँ:

अफ़लातून said...

बहुत खूब ।

RC Mishra said...

कुशवाहा जी और जाकिर अली को धन्यवाद, इस पोस्ट का लिन्क मेरी इस पोस्ट पर दिया गया है।
http://photos.rcmishra.net/2007/12/flowers-of-yellow-kaner.html

रंजू भाटिया said...

बहुत ही सुंदर कविता है यह ....