Pages

Subscribe:

Ads 468x60px

test ad

मेरा बस्‍ता कितना भारी # रूपचंद शास्‍त्री 'मयंक'

मेरा बस्‍ता कितना भारी

मेरा बस्‍ता कितना भारी। 
बोझ उठाना है लाचारी। 

मेरा तो नन्‍हा सा मन है। 
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है। 

रोज रोज विद्यालय जाना। 
बड़ा कठिन है भार उठाना। 

कंप्‍यूटर का युग अब आया। 
इसमें सारा ज्ञान समाया। 

मोटी पोथी सभी हटा दो। 
बस्‍ते का अब भार घटा दो। 

कम्‍प्‍यूटर जी पाठ पढ़ायें। 
हम बच्‍चों का ज्ञान बढ़ायें।।

8 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जाकिर अली रजनीश जी!
आपका धन्यवाद!

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर बाल रचना………बाल मन के भावो का सुन्दर चित्रण्।

दिगम्बर नासवा said...

मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्‍ते का अब भार घटा दो ...

वाह .. बहुत सुन्दर बाल रचना ... बच्चों को बहुत पसंद आएगी ...

Chaitanyaa Sharma said...

बहुत सुन्दर कविता ....

Kailash Sharma said...

बहुत सही सोच...बहुत प्यारी बाल कविता..

http://bachhonkakona.blogspot.com/

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर रचना!
आपकी इस खूबसूरत पोस्ट की चर्चा तो बाल चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2011/02/34.html
--
सुझाव-
बल्ॉग को नियमितरूप से सजाते रहें!

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

गीता पंडित said...

नए युग का आवाहन करती
सहज और कोमल भावों को समेटे
बाल रचना बहुत भायी....

आभार शास्त्री जी...और रजनीश जी...