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...नुक्‍कड़ पर महफिल लग जाती।

 

स्‍कूल की वैन 

डॉ. रामनिवास मानव 

वैन स्‍कूल की जब भी आती, बच्‍चों में हलचल मच जाती। 
भाग-दौड़ करते हैं बच्‍चे, देरी से डरते हैं बच्‍चे।
 
लगे रमन को बस्‍ता भारी, बस में चढ़ने की लाचारी। 
भूला नवल टिफिन ही लाना, जूतों की पॉलिश करवाना।
 
मोनू की ढ़ीली है टाई, कैसे काम चलेगा भाई। 
निम्‍मी भूली बैज लगाना, पर मुश्किल अब घर से लाना।

सुमन का होमवर्क अधूरा, जाने कैसे होगा पूरा। 
गुस्‍से में हैं मम्‍मी-पा, डाँट रहे हैं खोकर आपा।

कंडक्‍टर ने बस को रोका, उत्‍पाती बच्‍चों को टोका। 
ठीक नहीं है मारा-मारी, सभी सढ़ेंगे बारी-बारी।

जब भी वैन स्‍कूल कीआती, नुक्‍कड़ पर महफिल लग जाती। 
लगते सुभग-सलोने बच्‍चे, जैसे सजे खिलौने बच्‍चे।।

10 टिप्पणियाँ:

अनूप शुक्ल said...

रोचक रचना!

Vandana Ramasingh said...

बहुत सुन्दर वैन....रोचक कविता

Chaitanyaa Sharma said...

बहुत मजेदार कविता

मेरा मन पंछी सा said...

स्कूल वैन पर बहुत सुन्दर कविता..
:-)

http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

sajiv chitran.

virendra sharma said...

स्कूल बस के परिवेश और बच्चों के वेश को साकार करती रचना .बधाई .


कंडक्‍टर ने बस को रोका, उत्‍पाती बच्‍चों को टोका।
ठीक नहीं है मारा-मारी, सभी सढ़ेंगे बारी-बारी।

सधेंगे /सड़ेंगे /पढ़ेंगे ?स्पस्ट नहीं हुआ यहाँ अर्थ .कृपया बतलाएं मदद को आगे आएं जाकिर भाई .?

Kunwar Kusumesh said...

रोचक.

virendra sharma said...

लगे रमन को बस्‍ता भारी, बस में चढ़ने की लाचारी।
भूला नवल टिफिन ही लाना, जूतों की पॉलिश करवाना।

मोनू की ढ़ीली है टाई, कैसे काम चलेगा भाई।
निम्‍मी भूली बैज लगाना, पर मुश्किल अब घर से लाना।
बच्चों की आपाधापी समय की तंगी का बड़ा ही सजीव चित्रण किया गया है कविता में .

ram ram bhai
http://veerubhai1947.blogspot.in/मुखपृष्ठ

सोमवार, 19 नवम्बर 2012
PLANNING A FAMILY

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

Sunitamohan said...

vakai, bilkul sateek chitran kiya hai aapne! ise padhte hi mujhe apni bitiya ki school van ki yaad aa gayi, aaj hi mai use uske tiffin me banana (school me mangvaya tha) dena bhool gayi.