Pages

Subscribe:

Ads 468x60px

test ad

बस्‍ता मुझसे भारी है

-अवश्‍घोष-

यह कैसी लाचारी है 
बस्‍ता मुझसे भारी है।

कंधा रोज भड़कता है, जाने क्‍या क्‍या बकता है,
लाइलाज बीमारी है, बस्‍ता मुझसे भारी है।

जब भी मैं पढ़ने जाता, जगह जगह ठोकर खाता,
बस्‍ता क्‍या अलमारी है, बस्‍ता मुझसे भारी है।

कान फटे सुनते सहते, मुझे देखकर सब कहते,
बालक नहीं, मदारी है, बस्‍ता मुझसे भारी है।

12 टिप्पणियाँ:

Unknown said...

bahut sateek
bahut umda !

seema gupta said...

bhut sundr bachpan yaad aa gya....

regards

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा है .. सचमुच आजकल बच्‍चों के बस्‍ते बहुत भारी हो गए हैं ।

दिगम्बर नासवा said...

Vaah........ bahoot hi pyaari shikaayat ...... sach much aaj kal baste bahoot hi bhaari hain bachon ke

Anshu Mali Rastogi said...

आपकी कविता को पढ़कर अपनी बिटिया का बस्ता याद आया।

ओम आर्य said...

वाह आप तो कमाल पे कमाल किये ज रहे है अब कविता मे भी मुद्दो को उठाते है .............अति सुन्दर मन खुश हो गया.....बधाई

वेद रत्न शुक्ल said...

मुश्किल में है बच्चा
बच्चे से भारी बस्ता
सूझे है न रस्ता
शिक्षक को काटे कुत्ता

Chandan Kumar Jha said...

सुन्दर कविता.

vallabh said...

बच्चों की व्यथा को अच्छी तरह प्रस्तुत किया आपने ... बधाई..

रवि कुमार, रावतभाटा said...

वाकई में मज़ा आ गया....
यह कविता लाजवाब है.....

Fakeer Mohammad Ghosee said...

bahut badhiya

Vipin Behari Goyal said...

I totally agree

वाकई में मज़ा आ गया....
यह कविता लाजवाब है....