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बादल भइया, बरसो मुसलाधार।

-अनुराधा विमल-

बादल भइया, विनती करती, सुन लो मेरी पुकार।
रिमझिम-रिमझिम ना बरसो, तुम बरसो मुसलाधार।

वरना रेनी-डे की छुट्टी होगी नहीं हमारी,
झिपझिप बरसोगे तो भइया होगी फिर लाचारी,

द्वार खुलेंगे स्कूलों के जायेंगे मन मार।
रिमझिम-रिमझिम ना बरसो, तुम बरसो मुसलाधार।

नहीं जरूरी रात-रात भर, गरजो या तड़को,
दिन भर भी आराम करो, हम कहते कब बरसो,

लेकिन प्रात: इतना बरसो रहे आर या पार।
रिमझिम-रिमझिम ना बरसो, तुम बरसो मुसलाधार।

14 टिप्पणियाँ:

Kunnu said...

Badal haiya hamari bhi arji laga lo. Barso to musladhar hi barso.

Akshitaa (Pakhi) said...

वाह, कित्ती प्यारी रचना...बधाई.

साहित्य said...

Nice poem.

Satyendra Bahadur Pal said...

बहुत प्यारी कविता।

Satyendra Bahadur Pal said...

ये है असली बाल कविता।

Anonymous said...

Jakir ji, maine bhi bachcho ke liye kavitaye likhi hain, kya meri rachnaye Balman men chhap sakti hain?
Mukul Avasthi, Gonda.

मो0 ज़ैद said...

बहुत प्यारी कविता है। लेखक जी को बधाई।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मुकुल जी, आप अपनी रचना नीचे लिखे किसी भी माध्यम से भेज सकते हैं।
पोस्ट- ज़ाकिर अली ‘रजनीश’, पोस्ट बाक्स नं0 4, दिलकुशा, लखनऊ-226002.
ईमेल- zakirlko@gmail.com

दिगम्बर नासवा said...

सच है बच्चे तो यही चाहते हैं ... उनके मन की पुकार है ......

माधव( Madhav) said...

सुन्दर

Parul kanani said...

nirmal..komal...bhawnaon ki guhaar!

Udan Tashtari said...

सुन्दर!!


हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

manbhavan rachana....

Qudsiya Khanam said...

मजेदार कविता।