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लब पे आती है दुआ : डॉ0 अल्लामा इक़बाल


-डॉ0 अल्लामा इक़बाल-
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी।
ज़िन्दगी शम्मा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी।

दूर दुनिया का मेरे दम से अन्धेरा हो जाए।
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए।

हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत।
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत।

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब।
इल्म की शम्मा से हो मुझको मोहब्बत या रब।

हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना।
दर्द-मंदों से ज़इफ़ों से मोहब्बत करना।

मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको।
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको।

5 टिप्पणियाँ:

मनीष said...

Nice.

Kunnu said...

So cool

इस्मत ज़ैदी said...

बेहतरीन दुआ !
बचपन की चीज़ें शायद हमेशा याद रहती हैं ,हम ने बचपन में इस दुआ को याद किया था जो आज भी याद है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मुझे तो बचपन से ही यह नज़्म बहुत पसंद है!

hem pandey said...

मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको।
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको।

- यही दुआ है.