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उसी पहाड़ी के ढ़लान पर...

चाह हमारी... 
प्रभात गुप्‍त 

छोटी एक पहाड़ी होती, झरना एक वहां पर होता 
उसी पहाड़ी के ढ़लान पर काश हमारा घर भी होता। 
 
बगिया होती जहां मनोहर खिलते जिसमें सुंदर फूल 
बड़ा मजा आता जो होता वहीं कहीं अपना स्‍कूल।

झरनों के शीतल पानी में घंटो खूब नहाया करते 
नदी पहाड़ों झोपडि़यों के सुंदर चित्र बनाया करते। 

होते बाग सेब चीकू के थोड़ा होता नीम बबूल 
बड़ा मजा आता जो होता वहीं कहीं अपना स्‍कूल। 

सीढ़ी जैसे खेत धान के और कहीं केसर की क्‍यारी 
वहां न होता शहर भीड़ का, धुआं उगलती मोटरगाड़ी।

सिर पर सदा घटाएं काली पांवों में नदिया के कूल 
बड़ा मजा आता जो होता वहीं कहीं अपना स्‍कूल।

4 टिप्पणियाँ:

Vandana Ramasingh said...

वाकई यह स्कूल तो बहुत आकर्षक है

Arvind Mishra said...

Bahut sundar kavita.

Yuvraj said...

Nice poem..

virendra sharma said...

बहुत बढ़िया बाल कविता कविता .काव्य सौन्दर्य देखता ही बनता है .

ram ram bhai
http://veerubhai1947.blogspot.in/मुखपृष्ठ

सोमवार, 19 नवम्बर 2012
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