पतंग
-अश्वनी कुमार पाठक
नीली-पीली, लाल पतंग, उड़ती है बादल के संग।
नभ में मस्ती से लहराती, मानो चली छानकर भंग।
नीचे आती, गुटके खाकर, उठ जाती है, फिर सन्नाकर।
दाएँ-बाएँ शीश झुकाकर, ढील मिली चढ़ जाती चंग।
मोनू-सानू जल्दी आओ, सद्दी में मंझा लगवाओ।
चरखी में चढ़वा लो धागा, आज पतंगों की है जंग।
नीचे के काने में पुच्छी, और बीच में हो गलमुच्छी।
इससे सीखो ऊँचा उठना, इसके बड़े निराले ढंग।।
4 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर रचना। धन्यवाद।
मोनू-सानू जल्दी आओ, सद्दी में मंझा लगवाओ।
चरखी में चढ़वा लो धागा, आज पतंगों की है जंग ..
लग रहा है बसंत का आगमन हो गया है ... बहुत ही लाजवाब बाल रचना ...
अलहदा और रोचक प्रस्तुति
नीचे के काने में पुच्छी, और बीच में हो गलमुच्छी।
इससे सीखो ऊँचा उठना, इसके बड़े निराले ढंग।।
चढ़ना है हमें चन्दा की तरह सूरज की तरह नहीं
ढलना है .
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