अब यह चिडिया कहाँ रहेगी?
-महादेवी वर्मा
आँधी आई जोर शोर से, डालें टूटी हैं झकोर से।
उड़ा घोंसला अंडे फूटे, किससे दुख की बात कहेगी?
अब यह चिडिया कहाँ रहेगी?
हमने खोला अलमारी को, बुला रहे हैं बेचारी को।
पर वो चीं-चीं कर्राती है, घर मे तो वो नहीं रहेगी।
अब यह चिडिया कहाँ रहेगी?
घर में पेड़ कहाँ से लाएँ, कैसे यह घोंसला बनाएँ।
कैसे फूटे अंडे जोड़ें, किससे यह सब बात कहेगी।
अब यह चिडिया कहाँ रहेगी?
4 टिप्पणियाँ:
बहुत प्यारी..
इतनी सुंदर कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
महादेवी की इतनी अच्छी बाल कविता पढना मेरे लिए एक उपलब्धि रही. धन्यवाद.
इतनी मार्मिक कविता फिर से यहाँ पढ़ने को मिली!
इसके लिए रजनीश भाई बधाई के पात्र हैं!
धन्यवाद!
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