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...हालत मेरी खस्‍ता है।

 

हालत मेरी खस्‍ता है

-सूर्य कुमार पाण्‍डेय

टीचर जी, ओ टीचर जी,
हालत मेरी खस्‍ता है।

के जी टू में पढ़ती हूँ,
टू केजी का बस्‍ता है।

चलूँ सड़क पर रिक्‍शा वाला,
मुझे देख कर हँसता है।

एक सवारी और लाद लो,
ताने मुझपर कसता है।

बोझ किताबों का कम करिए,
बड़ी दूर का रस्‍ता है।

नन्‍हें फूलों पर क्‍यों रक्‍खा,
यह भारी गुलदस्‍ता है।

टीचर जी, ओ टीचर जी,
हालत मेरी खस्‍ता है।

...मानो चली छानकर भंग।

पतंग
-अश्‍वनी कुमार पाठक

नीली-पीली, लाल पतंग, उड़ती है बादल के संग।
नभ में मस्‍ती से लहराती, मानो चली छानकर भंग।

नीचे आती, गुटके खाकर, उठ जाती है, फिर सन्‍नाकर।
दाएँ-बाएँ शीश झुकाकर, ढील मिली चढ़ जाती चंग।

मोनू-सानू जल्‍दी आओ, सद्दी में मंझा लगवाओ।
चरखी में चढ़वा लो धागा, आज पतंगों की है जंग।

नीचे के काने में पुच्‍छी, और बीच में हो गलमुच्‍छी।
इससे सीखो ऊँचा उठना, इसके बड़े निराले ढंग।।