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बूँदों में नाचूँ, पानी में भीगूँ और भिगाऊँ।

लगता है
-अश्‍वनी कुमार पाठक

लगता है उछलूँ पर्वत की चोटी पर चढ़ जाऊँ।
बादल बन चंदा संग खेलूँ लुक-छिप उसे छकाऊँ।

बूँदों में नाचूँ, पानी में भीगूँ और भिगाऊँ।
सागर की छाती पर दौड़ूँ लहरों में खो जाऊँ।

तितली बनकर उडूँ, फूल पर भौंरे सा मंडराऊँ।
चंचल-चपल गिलहरी बनकर, कुतर-कुतर फल खाऊँ।

मन करता है मेरा अंधे की आँखें बन जाऊँ।
रंग भरूँ जीवन में, सुंदर दुनिया उसे दिखाऊँ।

6 टिप्पणियाँ:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर बाल रचना

Vandana Ramasingh said...

मन करता है मेरा अंधे की आँखें बन जाऊँ।
रंग भरूँ जीवन में, सुंदर दुनिया उसे दिखाऊँ।

सुन्दर भाव और सुन्दर कविता

Akshitaa (Pakhi) said...

बहुत प्यारा बाल-गीत...मन को भाया.

virendra sharma said...

सुन्दर भाव लिए गीत उन्मुक्त उपकारी मन की उन्मुक्त उड़ान लिए .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर रचना!

सुधाकल्प said...

अंतिम दो पंक्तियों ने इस बाल गीत की दुगुनी शोभा बढ़ा दी है|