-डॉ0 अल्लामा इक़बाल-
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा ।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुल्सिताँ हमारा ।
गु़रबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में ।
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा ।
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का ।
वो संतरी हमारा, वो पासवाँ हमारा ।
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ ।
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा ।
ऐ आब-ए-रौंद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको ।
उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा ।
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा ।
यूनान, मिस्र, रोमाँ, सब मिट गए जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी़, नाम-ओ-निशाँ हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी ।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा ।
'इक़बाल' कोई मरहूम, अपना नहीं जहाँ में ।
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा ।।
13 टिप्पणियाँ:
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ ।
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा ।
muze bhi ise gana aata hai !
Realy Nice.
Bahut hi pyari gazal.
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा ।
ये फ़ख़्र की बात है जो डॉ. इक़बाल ने भी कही कि हम हिंदुस्तानी हैं और एक हैं हमारे मज़ाहिब हमें झगड़े की तालीम नहीं देते बल्कि अम्न ओ अमान सिखाते हैं ,
हमारे मुल्क की अनेकता में एकता सारी दुनिया के लिये एक मिसाल है आज भी
मैं आप सब से एक गुज़ारिश करना चाहती हूं कि ये बच्चों का ब्लॉग है जो बहुत मासूम होते हैं खुदा के लिये उन्हें मासूम ही रहने दें
रचना के प्रकाशन का समय
बहुत ही सही चुना गया है!
सुन्दर प्रस्तुति. शुभकामनायें.
धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिए.
जय हो।
ओह मुझे लगा सबसे लोकप्रिय 'ऐ मेरे वतन के लोगों..' होगा..
आजादी के दिन सुन्दर पोस्ट...बधाई.
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स्वतंत्रता दिवस की बधाइयाँ..!!
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