-डॉ0 अल्लामा इक़बाल-
सुनाऊँ तुम्हें बात एक रात की,
कि वो रात अंधेरी थी बरसात की।
चमकने से जुगनु के था इक समाँ,
हवा में उड़ें जैसे चिनगारियाँ।
पडी़ एक बच्चे की उस पर नज़र,
पकड़ ही लिया एक को दौड़ कर।
चमकदार कीडा़ जो भाया उसे,
तो टोपी में झटपट छुपाया उसे।
तो ग़मग़ीन कैदी ने की इल्तेज़ा,
‘ओ नन्हे शिकारी ,मुझे कर रिहा।
ख़ुदा के लिए छोड़ दे, छोड़ दे,
मेरे कै़द के जाल को तोड दे।'
'करूंगा न आज़ाद उस वक्त तक,
कि देखूँ न दिन में तेरी मैं चमक।'
'चमक मेरी दिन में न पाओगे तुम,
उजाले में वो तो हो जाएगी गुम।
न अल्हड़पने से बनो पायमाल,
समझ कर चलो- आदमी की सी चाल।'
सुनाऊँ तुम्हें बात एक रात की,
कि वो रात अंधेरी थी बरसात की।
चमकने से जुगनु के था इक समाँ,
हवा में उड़ें जैसे चिनगारियाँ।
पडी़ एक बच्चे की उस पर नज़र,
पकड़ ही लिया एक को दौड़ कर।
चमकदार कीडा़ जो भाया उसे,
तो टोपी में झटपट छुपाया उसे।
तो ग़मग़ीन कैदी ने की इल्तेज़ा,
‘ओ नन्हे शिकारी ,मुझे कर रिहा।
ख़ुदा के लिए छोड़ दे, छोड़ दे,
मेरे कै़द के जाल को तोड दे।'
'करूंगा न आज़ाद उस वक्त तक,
कि देखूँ न दिन में तेरी मैं चमक।'
'चमक मेरी दिन में न पाओगे तुम,
उजाले में वो तो हो जाएगी गुम।
न अल्हड़पने से बनो पायमाल,
समझ कर चलो- आदमी की सी चाल।'
6 टिप्पणियाँ:
सुंदर कविता।
बचपन में जुग्नू के पीछे भाग भाग कर ये नज़्म बहुत गाई है हम ने ,और आज तक ज़बानी याद भी है
अल्लामा इक़बाल की तारीफ़ में कुछ कहना तो सूरज को चराग़ दिखाने जैसा होगा लेकिन
ज़ाकिर साहब आप का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं इस नज़्म को पढ़वाने के लिए
कित्ती प्यारी कविता ...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे...'
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
bahut sundar........!
बाल-सुलभ मन अनन्त आकाश में कुलांचे भरता है।
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