फूलों से होते हैं बच्चे, सच है ये।
और सभी होते हैं अच्छे, सच है ये।
इक पल रूठें तो दूजे पल हंसते हैं,
मानो मुस्कानों के लच्छे, सच है ये।
इनकी आँखों में खुद को पढ़ सकते हो,
दरपन जैसे बिलकुल सच्चे, सच है ये।
जो सोचें वो करके ही दम लेते हैं,
अपनी धुन के पूरे पक्के, सच है ये।
इतना खेलें भागे-दौड़ें सांस चढ़ी,
कब बैठे हैं फिर भी थक के, सच है ये।
मन के भोले दिल में भी तो भेद नहीं,
सब जैसे माना के मनके, सच है ये।
5 टिप्पणियाँ:
बडी मनोहर रचना है।
बच्चे तो बच्चे होते हैं, सच है ये ......... अच्छी रचना है ........
behd hi pyaari or mnmohak rachna...
regards
बहुत सुन्दर रचना है फोटो तो फूल से भी सुन्दर बालक की है धन्यवाद और बधाई
बेहतरीन रचना!!
मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
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