पापा, तंग करता है भैया।
कार तोड़ दी इसने मेरी, फेंक दिए दो पहिए दूर।
हार्न टूट कर अलग पड़ा है, बत्ती भी है चकनाचूर।
कहता- पापा से मत कहना, ले लो मुझसे एक रूपैया।
लकड़ी का था मेरा हाथी, इसने दोनों कान उखाड़े।
हिरन बनाए थे मैंने जो, कापी से वो पन्ने फाड़े।
तोड़-फोड़ डाली, जो मम्मी, मेले से लाई थी गैया।
इसने ले ली गुडिया मेरी, ठुमक-ठुमक पीती जो पानी।
एक नहीं, करता रहता है, हरदम ऐसी ही मनमानी।
गुड्डा मेरा चुरा लिया है, कहता ले लो चोर-सिपैया।
कार तोड़ दी इसने मेरी, फेंक दिए दो पहिए दूर।
हार्न टूट कर अलग पड़ा है, बत्ती भी है चकनाचूर।
कहता- पापा से मत कहना, ले लो मुझसे एक रूपैया।
लकड़ी का था मेरा हाथी, इसने दोनों कान उखाड़े।
हिरन बनाए थे मैंने जो, कापी से वो पन्ने फाड़े।
तोड़-फोड़ डाली, जो मम्मी, मेले से लाई थी गैया।
इसने ले ली गुडिया मेरी, ठुमक-ठुमक पीती जो पानी।
एक नहीं, करता रहता है, हरदम ऐसी ही मनमानी।
गुड्डा मेरा चुरा लिया है, कहता ले लो चोर-सिपैया।
-प्रकाश मनु
A Hindi Children Poem (Bal Geet) by Prakash Manu
3 टिप्पणियाँ:
Ati Sundar
-ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
{महामंत्री- तस्लीम /सबेइ}
Zakir bhai I visited you blog...commendable!!!
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