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किताबें कुछ कहना चाहती हैं, तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।


-सफदर हाशमी-


किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

 
किताबें करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक पल की।
ख़ुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें ?

किताबें कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में राकेट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों में कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है।

क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

5 टिप्पणियाँ:

रावेंद्रकुमार रवि said...

महत्त्वपूर्ण कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद!

नया वर्ष हो सबको शुभ!

जाओ बीते वर्ष

नए वर्ष की नई सुबह में

महके हृदय तुम्हारा!

Manuj said...

Sundar kavita, saarthak bhi.

Randhir Singh Suman said...

nice

ज्योति सिंह said...

ye kavita main bhopal ke desh bandhu karayalya me padhi rahi aur mujhe wahi ki yaad aa gayi ,mujhe bahut achchhi lagi .nutan varsh ki badhai

Sambhav said...

किताबों बेहतर दोस्त नहीं होते.