-राकेश 'सोहम'-
बहुत ठण्ड में प्यारे लगते छुट्टी के दिन सात।
सू-सू-किट-किट करते रहते हम सब दिन औ रात।
सू-सू-किट-किट करते रहते हम सब दिन औ रात।
स्वेटर, जॉकेट पहने-ओढ़ें घर में रहते बंद।
धुप सेंककर, आग तापकर दूर भगाते ठण्ड।
बड़े घरों में चालू होते गीजर और हीटर।
नाक-कान बन जाते हैं सर्दी के थर्मामीटर।
पढ़े धूप में या बिस्तर में कोई हमें बता दे।
मन करता है हम बिस्तर में जा करके सो जाते।
6 टिप्पणियाँ:
हा हा हा हा बेहद प्यारी रचना किसका मन नहीं करता मगर क्या करे छुट्टी नहीं मिलती न....सुन्दर
regards
बेहद सुंदर गीत..धन्यवाद जाकिर जी
छुंदल औल प्याली कविता।
Man ko bha gayi rachna.
पढ कर ठंड लगने लगी भाई..
बहुत ही प्यारी मीठी रचना है.
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