-कृष्ण शलभ-
हम धरती के फूल, हमीं हैं खुश्बू वाले झरने।
उड़े हवा के पंख लगा कर, कोई क्या उड़ पाए।
गुस्सा होती दादी अम्मा हमें देख हंस जाए।
बिना हमारे दादी माँ को घर भर लगे अखरने।
अम्मा की लोरी, बाबा की किस्सों भरी िकताब।
चाचा नेहरू की अचकन के हम ही रहे गुलाब।
जहाँ–जहाँ हम जाएं भैया मस्ती लगे बिखरने।
सूरदास केहमीं कन्हैया हम तुलसी के राम।
वीर शिवा, बन्दा बैरागी सभी हमारे नाम।
हम कच्ची मिट्टी हैं जैसा चाहो लगे संवरने।
उड़े हवा के पंख लगा कर, कोई क्या उड़ पाए।
गुस्सा होती दादी अम्मा हमें देख हंस जाए।
बिना हमारे दादी माँ को घर भर लगे अखरने।
अम्मा की लोरी, बाबा की किस्सों भरी िकताब।
चाचा नेहरू की अचकन के हम ही रहे गुलाब।
जहाँ–जहाँ हम जाएं भैया मस्ती लगे बिखरने।
सूरदास केहमीं कन्हैया हम तुलसी के राम।
वीर शिवा, बन्दा बैरागी सभी हमारे नाम।
हम कच्ची मिट्टी हैं जैसा चाहो लगे संवरने।
9 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया रचना .....
बहुत प्यारी और मनभावन रचना...
regards
अनुपम रचना .....
बहुत ही सुन्दर बाल रचना ।
सुन्दर और प्रभावपूर्ण ...
अति सुन्दर रचना . खासकर ये कि 'हम कच्ची मिट्टी हैं जैसा चाहो लगे संवरने '
कुछ ऐसे ही भाव के साथ नई दुनिया दैनिक के लिए १९९६ में मैंने गाँव की बालिका की तस्वीर दी थी -
मुनिया
प्यारी-प्यारी गाँव की गुडिया,
मुनिया उसका का नाम .
उसका गाँव है सबसे प्यारा,
खेत में करती काम .
रोज सबेरे जल्दी उठती,
सबको करे प्रणाम .
नहा-धोकर पूजा करती,
जय-जय सीताराम .
दादा के संग, खेत को जाती,
दिनभर करती काम .
गाय का चारा सिर पर लाती,
जब ढल जाती शाम .
[] राकेश 'सोहम'
सुन्दर बालगीत-----।
हेमन्त कुमार
बेहद सुंदर रचना
ईश्वर के दर्शन करने हैं तो बच्चों की दुनिया में आइये. सुन्दर रचना.
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