चाह नहीं, मैं सुरबाला के, गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ।
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य को इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।
-माखनलाल चतुर्वेदी
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ।
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य को इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।
-माखनलाल चतुर्वेदी
2 टिप्पणियाँ:
इन लाइनों ने तो देश में इन्कलाब पैदा किया था .
आभार माखनलाल चतुर्वेदी जी की इस कालजयी रचना के लिए.
Post a Comment