दादा को सोनू तंग कर दे।
पढ़ने नहीं दे, लिखने नहीं दे,
चश्मा निकाल के फेंक भी कहीं दे,
शुरू, अरे, फौरन जंग कर दे।
थाली पर मारे, जोर का झपट्टा,
थू-थू-थू थूके, मीठा या खट्टा,
चीख-चीख, रंग में भंग कर दे।
दफ्तर की जल्दी, कहे नहीं टा-टा,
चाहे स्कूटर पर, सैर और सपाता,
डाँटो तो, आँखें गंग कर दे।
-रामवचन सिंह ‘आनन्द’
A Hindi Children Poem (Bal Geet) by Ramvachan Sing ‘Aanand’
2 टिप्पणियाँ:
लाजवाब कविता
-ज़ाकिर अली ‘रजनीश’{महामंत्री- तस्लीम /सबेइ}
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