-रमेश तैलंग
बादल जी, बोलो क्या तुम भी पढ़ने जाया करते हो?
या फिर केवल गड़–गड़–गड़ शोर मचाया करते हो?
सुबह–सुबह मुझका तो मेरी मम्मी रोज जगा देती।
अलसाई आँखों से मीठेसपने दूर भगा देती।
देर हुई विदद्ययालय मे तो टीचर अलग सजा देती,
कहो किसीसे सजा कभी क्या तुम भी पाया करते हो?
सुनते हैं तुमको ऊपर सेसारी दुनिया दिखती है।
बोलो, क्या सचमुच ऊपर से प्यारी दुनिया दिखती है?
फूलों जैसी सुन्दर राजकुमारी दुनिया दिखती है,
जिस परतुम अपने आँचल की ठण्डी छाया करते हो?
नील गगन पर रहते हो तुम तो हो जाते सैलानी।
प्यारी धरती के होठों को छूकर हो जाते पानी।
कभी–कभी तो तुम्हें देखकर होने लगती हैरानी।
इन्द्र धनुष के रंग किस तरह तुम बिखराया करते हो?
बादल जी, बोलो क्या तुम भी पढ़ने जाया करते हो?
या फिर केवल गड़–गड़–गड़ शोर मचाया करते हो?
सुबह–सुबह मुझका तो मेरी मम्मी रोज जगा देती।
अलसाई आँखों से मीठेसपने दूर भगा देती।
देर हुई विदद्ययालय मे तो टीचर अलग सजा देती,
कहो किसीसे सजा कभी क्या तुम भी पाया करते हो?
सुनते हैं तुमको ऊपर सेसारी दुनिया दिखती है।
बोलो, क्या सचमुच ऊपर से प्यारी दुनिया दिखती है?
फूलों जैसी सुन्दर राजकुमारी दुनिया दिखती है,
जिस परतुम अपने आँचल की ठण्डी छाया करते हो?
नील गगन पर रहते हो तुम तो हो जाते सैलानी।
प्यारी धरती के होठों को छूकर हो जाते पानी।
कभी–कभी तो तुम्हें देखकर होने लगती हैरानी।
इन्द्र धनुष के रंग किस तरह तुम बिखराया करते हो?
1 टिप्पणियाँ:
Ramesh ji, aapka jawab nahin.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary- TSALIIM / SBAI }
Post a Comment