उनका मौसम
देवेन्द्र कुमार
गर्मी को पानी से धोएँ
बारिश को हम खूब सुखाएँ
जाड़े को फिर सेंक धूप से
अपनी दादी को खिलवाएँ।
कैसा भी मौसम हो जाए
उनको सदा शिकायत रहती
इससे तो अच्छा यह होगा
उनका मौसम नया बनाएँ।
कम दिखता है, दाँत नहीं है,
पैरों से भी चल न पातीं
बैठी-बैठी रटती रहतीं
न जाने कब राम उठाएँ।
शुभ-शुभ बोलो प्यारी दादी,
दर्द भूलकर हँस दो थोड़ा
आँख मूँदकर देखो अब तुम
हम सब मिलकर लोरी गाएँ।
4 टिप्पणियाँ:
काम दिखता है, दाँत नहीं है,
पैरों से भी चल न पातीं
सुन्दर बाल गीत है डॉ .जाकिर भाई .कृपया पहली पंक्ति में काम की जगह कम दिखता है ,कर लें .शुक्रिया .बढ़िया सजाया है आपने साइंस ब्लॉग .बधाई स्वीकार करें .कृपया यहाँ भी आया करें -
ram ram bhai
रविवार, 20 मई 2012
ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -२ )
ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -२ )
http://veerubhai1947.blogspot.in/
nice poem
वाह ... बच्चों कों समझ आने वाली सरल रचना ... बहुत अच्छी रचना ..
बेहतरीन रचना...सुंदर प्रस्तुति..आभार
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