
उनका मौसम
देवेन्द्र कुमार
गर्मी को पानी से धोएँ
बारिश को हम खूब सुखाएँ
जाड़े को फिर सेंक धूप से
अपनी दादी को खिलवाएँ।
कैसा भी मौसम हो जाए
उनको सदा शिकायत रहती
इससे तो अच्छा यह होगा
उनका मौसम नया बनाएँ।
कम दिखता है, दाँत नहीं है,
पैरों से भी चल न पातीं
बैठी-बैठी रटती रहतीं
न जाने कब राम उठाएँ।
शुभ-शुभ बोलो प्यारी दादी,
दर्द भूलकर हँस दो थोड़ा
आँख मूँदकर देखो अब तुम
हम सब मिलकर लोरी गाएँ।