हालत मेरी खस्ता है
-सूर्य कुमार पाण्डेय
टीचर जी, ओ टीचर जी,
हालत मेरी खस्ता है।
के जी टू में पढ़ती हूँ,
टू केजी का बस्ता है।
चलूँ सड़क पर रिक्शा वाला,
मुझे देख कर हँसता है।
एक सवारी और लाद लो,
ताने मुझपर कसता है।
बोझ किताबों का कम करिए,
बड़ी दूर का रस्ता है।
नन्हें फूलों पर क्यों रक्खा,
यह भारी गुलदस्ता है।
टीचर जी, ओ टीचर जी,
हालत मेरी खस्ता है।
8 टिप्पणियाँ:
के जी टू में पढ़ती हूँ मैं ,
टू के जी का बस्ता है .
मार्मिक शब्द चित्र नन्नी कलि का .
bahut bahut pyaaree rachna !!
sach hai bachche bharee baston se behad pareshan hain .
sach kaha baccho ke bag ko dekh kar lagata hai ki usame .3-4 kilo dal chaval bhara ho..
bahut hi badhiya prastuti....
सच में बस्तों का भार बढता जा रहा है...बहुत सुंदर रचना..
वाह! क्या बात है!! दिल को छूती कविता...
बहुत सुन्दर
टीचर जी, ओ टीचर जी,हालत मेरी खस्ता है। कितना भरी बस्ता है
बहुत ही रोचक और प्यारी कविता !!!
बहुत बढ़िया गज़ल
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