पापा! गर मैं चिड़िया होता
दीनदयाल शर्मा
पापा! गर मैं चिड़िया होता
बिन पेड़ी छत पर चढ़ जाता।
भारी बस्ते के बोझे से
मेरा पीछा भी छुट जाता।
होमवर्क ना करना पड़ता
जिससे मैं कितना थक जाता।
धुआँ-धूल और बस के धक्के
पापा! फिर मैं कभी न खाता।
कोई मुझको पकड़ न पाता
दूर कहीं पर मैं उड़ जाता
14 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया!
sundar balkavita achhi lagi
बहुत बढ़िया रचना दीनदयाल जी की
baal man kaa sundar chitran ,,bahut khoob !!
बहुत सुन्दर, बधाई
waah behad khubsurat rachna badhai
डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ सहित आप सबका हार्दिक आभार..
चिड़ा-चिड़िया।
..पाप गर मैं पंछी होता।
कल 09/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।
धन्यवाद!
bal-sulabh nishchalta.......
wahh..
bahut sundar
सुन्दर... वाह वाह!
सादर...
बहुत ही बढ़िया।
सादर
डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ सहित आप सबका हार्दिक आभार..
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