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कौन नकल करता अब किसकी कैसे हम बतलाएँ।

कौआ उतरा है मुँडेर पर
-रमेश चंद्र शाह

कौआ उतरा है मुँडेर पर
और कंधे पर नाना
एक दूसरे में दोनों ने
जाने क्‍या पहचाना।

गर्दन घुमा-घुमा कौऐ को
देख रहा है नाना
कौन आ गया है यह मुझसा
दाना और सयाना।

गर्दन घुमा-घुमा कर कागा
काँव-काँव करता है
हिला-हिला सिर अपना यह भी
हाँव-हाँव भरता है।

एक दूसरे को बढ़-चढ़कर
दोनों पाँव दिखाएँ
कौन नकल करता अब किसकी
कैसे हम बतलाएँ।

3 टिप्पणियाँ:

Sunil Kumar said...

बहुत अच्छी बालकविता बधाई.....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बढिया है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!