-रोहिताश्व अस्थाना-
लड्डू-पेड़े से दिन होते, रसगुल्ले सी रातें।
तब कितना खुश होते हम सब मिलकर मौज मनाते।
गरम जलेबी से यदि होती अपनी शुरू पढ़ाई।
तब तो दिन भर में सचमुच सारी किताब पढ़ जाते।
गेंद सेब की होती, गन्ने का होता यदि बल्ला,
विकेट खूब लेते हम चौके-छक्के खूब बनाते।
मीठे आमों के बागों में पड़ते अगर पहाड़ा,
गणित हमें हलवा-सा लगता अच्छे नम्बर पाते।
सुबह-शाम मम्मी यदि देती हमको शक्करपारे,
तो हम कोयल के भाई बन बोली मधुर सुनाते।
लड्डू-पेड़े से दिन होते, रसगुल्ले सी रातें।
तब कितना खुश होते हम सब मिलकर मौज मनाते।
गरम जलेबी से यदि होती अपनी शुरू पढ़ाई।
तब तो दिन भर में सचमुच सारी किताब पढ़ जाते।
गेंद सेब की होती, गन्ने का होता यदि बल्ला,
विकेट खूब लेते हम चौके-छक्के खूब बनाते।
मीठे आमों के बागों में पड़ते अगर पहाड़ा,
गणित हमें हलवा-सा लगता अच्छे नम्बर पाते।
सुबह-शाम मम्मी यदि देती हमको शक्करपारे,
तो हम कोयल के भाई बन बोली मधुर सुनाते।
7 टिप्पणियाँ:
तुमने याद दिला दिया बचपन
अब उमर हुई हमारी है पचपन
एक कविता मे इतनी मिठाई
हमने आज तक कही नही खाई
डायबि्टिज ने काम बिगाड़ दिया
दिवाली मे मीठा नही खाने दिया
बधाई हो जो हमारा ख्याल रखा है
चच्चा मिठाई कविता मे खा रहे है
किसको क्या पता है
achcha laga padh kar..
मीठे आमों के बागों में पड़ते अगर पहाड़ा,
गणित हमें हलवा-सा लगता अच्छे नम्बर पाते।
essh bshut mithi rachana hai sunder
बेहद खुबसूरत रचना!
बहुत बढ़िया गुनगुनाती हुई रचना..धन्यवाद
सच मे ऐसा ही कुछ हो जाये,
फ़िर से हम बच्चे बन जायें।
बहुत सुन्दर।
वाह हमारे मुह में भी पानी आ गया ......... सुन्दर बाल गीत है .....
Post a Comment