Pages

Subscribe:

Ads 468x60px

test ad

चाँद का कुर्ता

 चाँद का कुर्ता

-रामधारी सिंह 'दिनकर'-

हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला

सन सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।


आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का।


बच्चे की सुन बात कहा माता ने- अरे सलोने,
कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।


जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।


कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा।


घटता बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है।


अब तू ही ये बता, नाप तेरा किस रोज लिवाएँ,
सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए?

3 टिप्पणियाँ:

ghughutibasuti said...

वाह, बहुत सुन्दर कविता पढ़वाई।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इस प्रस्तुति का.

admin said...

अच्‍छी कविता है।

-----------
SBAI TSALIIM