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बाल कविता- नन्‍ही मुनिया छुई-मुई

नन्‍ही मुनिया छुई-मुई।

दिन भर तितली जैसी उड़ती, घर आँगन चौबारे में।

मुँह बिचकाती, खूब हंसाती, करती बात इशारे में।

मम्‍मी अगर जरा भी डांटें, रोने लगती उई-उई।


रोज सवेरे चार जलेबी, बड़े चाव से खाती है।

चीनी वाला दूध गटागट, दो गिलास पी जाती है।

दूध-जलेबी ना हो, समझो, आज मुसीबत खड़ी हुई।।


दादी के कंधे चढ़ जाती, कहती चल रे चल घोड़े।

टिक-टिक दौड़ लगा दे जल्‍दी, वरना मारूँगी कोड़े।

दादी उसको पुचकारें तब-चल नटखट, शैतान, मुई।।

-डा0 फहीम अहमद

<चित्र साभार http://www.sostav.ru/

4 टिप्पणियाँ:

Anonymous said...

सुन्‍दर कविता।

साहित्य said...

सुन्‍दर गीत है। बधाई।

admin said...

बहुत सुन्‍दर रचना है।

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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

Anonymous said...

nice foto :-)