-नागेश पाण्डेय 'संजय'
कालू बन्दर बना भाग्य से, किसी गाँव का नेता।
हुआ उसे भ्रम, नाव गाँव की अब तो मैं ही खेता।
राज-काज की सुविधाएँ लीं, शुरू किए घोटाले।
बोला- पद ना छोड़ूं, किसकी जुर्रत मुझे हटा ले।
मनमानी की खूब, गाँव में गुण्डाराज चलाया।
रंग देखकर उसका भैया हर कोई चकराया।
हुआ प्रदर्शन, हुई रिपोर्ट पर दिया नहीं इस्तीफा।
बोला-तुम सब बस शरीफ, हो मैं हूँ बन्धु शरीफा।
पता शेर को चला, क्रोध में गुर्राता वह आया।
ऐसा मारा मुक्का, बन्दर नज़र नहीं फिर आया।
कालू बन्दर बना भाग्य से, किसी गाँव का नेता।
हुआ उसे भ्रम, नाव गाँव की अब तो मैं ही खेता।
राज-काज की सुविधाएँ लीं, शुरू किए घोटाले।
बोला- पद ना छोड़ूं, किसकी जुर्रत मुझे हटा ले।
मनमानी की खूब, गाँव में गुण्डाराज चलाया।
रंग देखकर उसका भैया हर कोई चकराया।
हुआ प्रदर्शन, हुई रिपोर्ट पर दिया नहीं इस्तीफा।
बोला-तुम सब बस शरीफ, हो मैं हूँ बन्धु शरीफा।
पता शेर को चला, क्रोध में गुर्राता वह आया।
ऐसा मारा मुक्का, बन्दर नज़र नहीं फिर आया।
1 टिप्पणियाँ:
बाल कविता के माध्यम से नेताओं पर करारा व्यंग्य।
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S.B.A. TSALIIM.
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