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बाल गीत
तुम बनो किताबों के कीड़े, हम खेल रहे मैदानों में।
तुम घुसे रहो घर के अंदर, तुमको है पंडित जी का डर।
हम सखा तितलियों के बनकर, उड़ते फिरते उद्यानों में।
तुम रटो रात-दिन अंगरेजी, कह ए-बी-सी-डी-ई-एफ-जी।
हम तान मिलाते हैं कू-कू, करती कोयल की तानों में।
हम रहते फूलों कलियों में, तुम रहते गन्दी गलियों में,
हम खेल रहे बन ती-ती-ती, तुम सड़ते रहो मकानों में।
तुम दुबले-पतले दीन-हीन, हम में तुम जैसे बनें तीन।
हम शैतानों के नेता है, पर पास सदा इम्तहानों में।
तुम लिए किताबों का बोझा, हम उछल-कूद खाते गोझा।
तुममें हममें है भेद वही, जो मूर्खों और विद्वानों में।
-निरंकार देव सेवक
A Hindi Children Poem (Bal Geet) by Nirankar Dev Sewak
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